संसदीय समय का अपव्यय आर्थिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीय नुकसान: प्रो. पासवान

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WEDNESDAY,25,DECEMBER,2024/LOCAL DESK/BREAKING NEWS

नितेश कुमार की रिपोर्ट

“संसद की कार्यवाही आम जनता के टैक्स के पैसों से चलती है,जिस पर प्रति मिनट खर्च ढाई लाख रुपए है”

जमुई /RASHTRA VIHAR LIVE 24 NEWS: नगर परिषद स्थित आनंद विहार कॉलोनी में ‘भारतीय संसद सत्र और कार्यवाही का महत्व’ विषय पर बुधवार को एक परिचर्चा की गई, जिसकी अध्यक्षता केकेएम कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. (प्रो.) गौरी शंकर पासवान ने की।
संसद सत्र के महत्व पर बोलते हुए प्रो.गौरी शंकर पासवान ने कहा कि भारतीय संसद लोकतंत्र का हृदय स्थल है, जहां नीतियां बनती हैं, जनता की आवाज उठती हैं, और देश की दिशा तय होती हैं। संसद सत्र और कार्यवाही जनतंत्र का जान है। इसका बहुआयामी महत्व है। संसदीय बहस और चर्चा की गुणवत्ता जनतंत्र की नींव है। लेकिन विडंबना है कि आए दिन संसदीय बहस की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। जबकि संसदीय सत्र की चर्चा व कार्यवाही लोकतंत्र की धूरी है। इसकी गुणवत्ता बनाए रखना माननीय सांसदों की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि संसदीय समय का अपव्यय आर्थिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीय नुकसान है। संसदीय कार्यवाही जनता के टैक्स की पैसों से चलती है, जिस पर प्रति मिनट खर्च लगभग 2.5 लाख रुपए है। तीसरे (शीतकालीन) सत्र में 65 घंटे समय का नुकसान हुआ है यानी कुछ भी काम नहीं हुआ और कार्यवाही बाधित रही। इस अवरोध के कारण 97.87 करोड़ रुपया बिना किसी काम के जनता का पैसा पानी में बह गया। संसद सत्र के एक-एक सेकंड का मूल्य है। अतः संसद में प्रभावी और तर्कपूर्ण बहस होने चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता रामचंद्र रविदास ने कहा कि सांसद लोकतंत्र की आत्मा है। संसद सत्र चलाने में जो खर्च होता है वह रुपया जनता का है। सुचारू रूप से संसद चलना बहुत मायने रखता है। संसद में विरोध, हंगामा, धक्का मुक्की से सत्र सस्पेंड होते हैं। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया, और अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।पक्ष-विपक्ष के सांसदों द्वारा संसद में धक्का-मुक्की निश्चित रूप से संसद की गरिमा का अपमान है। डॉ.अंबेडकर के नाम का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ और वोट बैंक के लिए करना एक सामान्य प्रवृत्ति बन गई है,जो बाबा साहब अंबेडकर और संविधान का अपमान है। राजनीतिक दलों को डॉO अंबेडकर के नाम का दुरुपयोग बंद करके उनके विचारों और आदर्शों को लागू करना चाहिए। अंबेडकर को केवल चुनावी समय में याद करना एवं उनके नाम पर राजनीति करना राजनीतिक स्टंट है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभात कुमार भगत ने कहा कि संसद लोक सेवा का मुख्य केंद्र है। संसद नीति निर्धारण के लिए है। जनता के हित में नियम कानून बनाने के लिए है न कि धक्का मुक्की कर संसदीय कार्यवाही में बाधा पहुंचा कर जनता के करोड़ों-अरबों रुपया बर्बाद करने के लिए। सभी सांसदों को असहमति जताने और बहस करने का अधिकार है, लेकिन यह मर्यादा और संसदीय नियमों के भीतर होना चाहिए। सांसदों का कर्तव्य है कि वे संसद में शिष्टाचार और अनुशासन का परिचय दें। संसदीय कार्यवाही की खबरें पूरे विश्व में जाती हैं। किसी भी मुद्दे पर धक्का मुक्की, असंवैधानिक बयान और व्यवहार संसद की गरिमा का उल्लंघन ही नहीं, बल्कि इससे विदेश में भारत की छवि खराब होती है। संसद सत्र के एक एक मिनट का महत्व है। संसद के समय का जनता के लिए सदुपयोग किया जाना चाहिए।
प्रो.सरदार राय ने कहा कि संसद जनता की समस्याओं के समाधान का सबसे बड़ा सेंटर है। संसदीय सत्र का समय देश की संपत्ति है। संसद के एक-एक क्षण का मूल्य है। संसद की गरिमा बचानी है और लोकतंत्र की लाज बचानी है तो संसदीय सत्र की कीमत समझना होगा। संसद में हंगामे से कुछ नहीं मिलता, बल्कि देश की प्रगति बाधित होती है। संसद में माननीय सांसदों की अनुशासनहीनता धक्का मुक्की से भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर धूमिल और कमजोर होती है
प्रो.संजीव कुमार सिंह और प्रो.आनंद कुमार सिंह ने कहा कि लोकतंत्र की नींव संसद की गरिमा में निहित है। संसद का सम्मान देश और जनता का सम्मान है। लोकतंत्र के मंदिर में बहस गरिमामयी हो तो लोकतंत्र का भविष्यफल उज्जवल होता है। वाजपेई जी ने कहा था कि संसद विवादों का स्थान नहीं, बल्कि संवाद का स्थान है। दोनों सदनों में केवल 105 घंटे ही कार्यवाही चली है। और मात्र चार बिल पास हुए हैं. 65 घंटे समय का हानि हुआ है।
वरिष्ठ शिक्षक श्री दिनेश मंडल ने कहा कि संसद जनता की आकांक्षाओं का दर्पण है। कई दशक से संसद सत्र में लगातार काम में कमी आ रही है। संसद सत्र की शुरुआत अदानी पर हुई थी और अंत अंबेडकर के नाम पर धक्का मुक्की और एफआईआर के रूप में हुई जो उचित और न्याय संगत नहीं है। संसद सहमति और सामंजस्य से चलता है। और जहां सहमति है, वही प्रगति है। विपक्ष सरकार का सुधारक होता है, घोर विरोधी नहीं। संसद का समय नष्ट होने से विकास की गति धीमी हो जाती है। संसद सदस्यों को अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए। संसदीय सत्र का उपयोग उत्पादक के रूप में करना चाहिए।

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