FRIDAY,25,OCTOBER,2024/LOCAL DESK/BREAKING NEWS
जमुई/RASHTRAVIHARLIVE 24 NEWS:दीपावली में मिट्टी के दीयों का उपयोग और इसके महत्व पर केकेएम कॉलेज में एक परिचर्चा की गई, जिसकी अध्यक्षता स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर पासवान ने की।
अध्यक्षीय प्रबोधन में डॉ.पासवान ने कहा कि मिट्टी के दीए का प्रयोग प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक काल में शुरू हुआ था। यह प्राचीन कालीन परंपरा है। मिट्टी का दीया जलाना स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प है। दिवाली में मिट्टी के दिए से घर रोशन करना आज की आवश्यकता है. यदि घी, सरसों और तिल के तेल से मिट्टी के दीए जलाएं तो सोना में सुहागा है.क्योंकि इसके अनेक फायदे हैं. मिट्टी का दीया जलाना तथा पर्यावरण संरक्षण करना वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक है। इसका उद्देश्य स्थानीय कारीगरों (कुम्हारों) पारंपरिक हस्तकला जीवित करना तथा प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाना है. मिट्टी के दिए की मांग बढ़ने से इन कारीगरों को आर्थिक सहायता मिलती है,और उनके व्यवसाय को पुनर्जीवन मिलता है। मिट्टी का दीया स्थानीय शिल्पकारों के लिए आर्थिक संबल का साधन है। कुम्हार सदियों से मिट्टी के दीए बनाते आए हैं, लेकिन आधुनिक समय में प्लास्टिक और अन्य सजावटी सामग्रियों की बाढ़ सी आ गई है. इससे शिल्पकारों की आजीविका पर संकट घिर गए है. प्रभात खबर की यह अपील हमें स्मरण कराती है कि दिवाली केवल एक पर्व ही नहीं, बल्कि एक परंपरा भी है, जो सदियों से चली आ रही है.।
उन्होंने कहा कि दिवाली में मिट्टी के दिए का इस्तेमाल सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक आवश्यकता ही नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय जिम्मेदारी है. दीपावली में मिट्टी के दीए जलाना वाकई में अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और निराशा पर आशा की जीत का उत्सव है.मिट्टी के दीयों से अपना घर रोशन करें,और इसे सच्चे अर्थों में प्रदूषण मुक्त, समृद्धि एवं इको फ्रेंडली पर्व मनाएं. विडंबना है कि अब मिट्टी की सोंधी महक नहीं आती. मतलब मिट्टी निर्मित दीए तथा अन्य सामग्रियों का व्यवसाय विलुप्ति के कगार पर है। अतः नागरिकों से अपील है कि बिजली के लाइट और चाइनीज इलेक्ट्रिक सामग्रियों के बजाय पारम्परिक, देसी और शुद्ध दीए व सामग्रियों का प्रयोग करें। कहा गया है कि मिट्टी के दीए जलाते चलो, संवेदनाओं के लौ जलाते चलो। हर अंधेरा एक दिन सिमटेगा,सपनों का हकीकत बनाते चलो। हर रोशनी एक उम्मीद है,आशा के दीप जलाते चलो।
हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो.कैलाश पंडित ने कहा कि मिट्टी के दीए स्वाभिमान के प्रतीक होते हैं. मिट्टी के दीए जलाएं और पर्यावरण को बचाएं. कहते हैं कि – दीप जले पर धुआं न हो, प्रकृति से कोई गिला न हो. कम धुआं ज्यादा उजियारा यही हो हमारा नारा। मिट्टी के दीए जलाने से ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है. घी सरसों और तिल के तेलयुक्त दीए जलाने पर उससे निकलने वाले धुएं से मच्छर और अन्य कीट दूर हो जाते हैं. यह शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक भी है. ये पर्यावरण के अनुकूल होते. मिट्टी के दीए जलाना प्राचीन परंपरा है. इससे स्थानीय कलाकारों की आर्थिक स्थिति में सुधार होती है. दिवाली में मिट्टी के दीए जलाना बहुत ही अच्छा कार्य है. चुकी इसके बहू आयामी फायदे हैं.
राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र कुमार गोयल ने कहा कि आधुनिक युग में मिट्टी के दिए जलाना सार्थक ही नहीं, बल्कि अत्यंत आवश्यक है. क्योंकि मिट्टी के दीए शुद्ध होते हैं. इसमें किसी प्रकार का केमिकल या प्लास्टिक का मिलावट नहीं होता है. यह सिर्फ़ प्राकृतिक मिट्टी और पानी से बना होता है. इससे किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता है. बल्कि इसके अनेकानेक लाभ हैं.
मौके पर उपस्थित प्रो.सरदार राम, डॉ.सत्यार्थ प्रकाश,डॉ.अजीत कुमार भारती, डॉ अंसार अहमद, डॉ आमोद कुमार सिंह तथा रवीश कुमार सिंह व सुशील कुमार आदि ने संयुक्त रूप से कहा कि दिवाली एक महापर्व है.मिट्टी के दीए का प्रकाश अज्ञान, अंधकार और बुराई का नाश करने का प्रतीक है. अतःमिट्टी के दीए से हर घर रोशन होना चाहिए. चुकी यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है.उन्होंने कहा कि यह सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। मिट्टी का दीया जलाएं, प्रदूषण को भगाऐं श्लाघनीय नारा होना चाहिए। मिट्टी का दीया प्रकृति संग जीने का संदेश देता है. मिट्टी के दीए होते हैं छोटे, पर संदेश बड़ा लाते हैं।