बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी राज्य में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरा माने जाते थे,फिर भी नरेंद्र मोदी के दौर में वे बिहार की सियासत में कैसे किनारे होते गए,जानते हैं उनके पूरी राजनीतिक सफ़र

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WEDNESDAY,15,MAY,2024/STATE DESK/BREAKING NEWS

राष्ट्र विहार ब्यूरो रिपोर्ट

पटना/RASHTRA VIHAR LIVE 24 NEWS: सुशील कुमार मोदी को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बहुत ही क़रीबी माना जाता था|कुछ साल पहले तक बिहार में बीजेपी की चर्चा सुशील कुमार मोदी के बिना नहीं हो सकती थी|राज्य में बीजेपी के सबसे बड़े नेता माने जाते थे|आपको याद होगा कि साल 2005 में सुशील मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी ने ही बिहार में एनडीए की सरकार बनवाई थी|लेकिन बीजेपी में हो रहे बदलाव का असर सुशील मोदी और बिहार बीजेपी पर भी हुआ और वो धीरे-धीरे अकेले पड़ते चले गए|राजनीति के इसी माहौल में सोमवार को सुशील मोदी का निधन हो गया| लम्बे समय से सुशील मोदी कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे|72 साल के सुशील मोदी का इलाज दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में चल रहा था|

सुशील मोदी को बीजेपी में वाजपेयी और आडवाणी के दौर का नेता माना जाता था|

  • आपको जानकारी होगी कि सुशील मोदी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से की थी| वे लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य भी रहे थे| वे देश के चारों सदनों के लिए चुने जाने वाले विरले राजनेताओं में से एक थे| बिहार बीजेपी का बड़ा चेहरा

साल 2000 में जब नीतीश कुमार महज़ एक हफ़्ते के लिए मुख्यमंत्री बने थे, उस वक़्त भी सुशील कुमार मोदी को नीतीश सरकार में मंत्री बनाया गया था|

साल 2005 में बिहार में आरजेडी की सरकार गिरने के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने और सरकार में उनका दर्जा नीतीश के बाद दूसरे नंबर पर माने जाते थे|

सुशील मोदी साल 2020 तक बिहार में एनडीए की सरकार के दौर में उपमुख्यमंत्री रहे थे| वे बिहार सरकार में लंबे समय तक वित्त और वाणिज्य विभाग के मंत्री थे| सुशील मोदी की क़ाबिलियत को केंद्र की यूपीए सरकार ने भी सराहा था|

जीएसटी लागू करने से पहले भारत सरकार ने साल 2012-13 में सुशील मोदी को राज्यों के वित्त मंत्रियों की एम्पावर्ड कमेटी का अध्यक्ष बनाया था| जीएसटी को समझने के लिए सुशील मोदी ने उस वक़्त ऐसे देशों की यात्रा की थी जहाँ जीएसटी लागू था|

साल 2009 के लोकसभा चुनाव और फिर साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी ने बिहार में एनडीए को बड़ी चुनावी सफलता दिलाई थी| सुशील मोदी इसका श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार और उनके शासन को देते थे|

नीतीश कुमार के नाम पर इस तरह की चुनावी सफलता के रिकॉर्ड को देखते हुए साल 2013 में सुशील मोदी ने नीतीश को पीएम मैटेरियल बताया था|शायद यहीं उनसे चूक हो गई और बीजेपी की नजर उनके प्रति टेढ़ी हो गई|

हालाँकि बाद में बीजेपी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा बनाया था|

माना जाता है कि सुशील मोदी का यह बयान और नीतीश कुमार के प्रति उनका सम्मान बाद में उनके राजनीतिक सफ़र के लिए भी मुश्किल बना|

कैसे किनारे पड़ते गए सुशील मोदी आइए जानते हैं :

साल 2017 में नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी का श्रेय सुशील मोदी को दिया जाता था| साल 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया था, उसके बाद नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए थे|

इस लिहाज से साल 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद बिहार में बनी एनडीए सरकार का ज़िक्र काफ़ी अहम है| उस सरकार में सुशील मोदी को मंत्रिमंडल में नहीं रखा गया था|

बाद में एलजेपी नेता रामविलास पासवान के निधन के बाद बीजेपी ने सुशील मोदी को पासवान की जगह दिसंबर 2020 में राज्यसभा भेजा था|

सुशील मोदी के राज्यसभा का कार्यकाल इसी साल ख़त्म हुआ था, लेकिन उन्हें दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा गया|

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कुमार मानते हैं कि सुशील मोदी का अच्छा पक्ष ही राजनीति में उनके लिए बुरा साबित हुआ और आज की बीजेपी की राजनीति में वो हाशिए पर चले गए|

पुष्पेंद्र कुमार के मुताबिक, “बीजेपी को बिहार में नंबर वन की पार्टी बनने की इच्छा है और इसके लिए शिकार जेडीयू को बनना होगा| सुशील मोदी का व्यक्तित्व ऐसा नहीं था, वो नीतीश का सम्मान करते थे| उनकी मौजूदगी नीतीश को डराती नहीं थी| यह आज की राजनीति के लिहाज़ से उनकी कमज़ोरी थी|

सुशील मोदी अपनी छवि की वजह से ही हमेशा नीतीश कुमार के क़रीबी और भरोसेमंद बने रहे|

सुशील कुमार मोदी को उन नेताओं में गिना जाता था जो दुनिया भर की ख़ास गतिविधियों पर नज़र रखते थे| आर्थिक मामलों के अलावा कई अन्य विषयों की उनकी समझ काफ़ी अच्छी थी| इसी ख़ासियत ने नीतीश कुमार की सरकार में हमेशा उनकी अहमियत बनाए रखी थी|

क़रीब 50 साल के अपने राजनीतिक सफर में सुशील मोदी पर कभी भ्रष्टाचार का या कोई अन्य गंभीर आरोप नहीं लगा| सुशील मोदी कम बोलते थे और विरोधियों पर भी संयमित भाषा में हमला करते थे|

आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी मानते हैं कि सुशील मोदी काजल की कोठरी से बेदाग़ निगल गए, उनके लंबे राजनीतिक जीवन में उनपर कभी कोई दाग़ नहीं लगा|

शिवानंद तिवारी याद करते हैं, “बीमारी के बाद सुशील जी जिस दिन पटना आए थे, उसी रात को उनका फ़ोन आया था| आवाज़ में दम नहीं था| मैंने बात करने से रोक दिया और अगले दिन उनके घर गया| वो बहुत कमज़ोर हो गए थे| दो-तीन मिनट उनके सिराहने बैठकर उनकी पत्नी से मिलकर आया था|

ज़रूरी मुद्दों और विषय की अच्छी जानकारी की वजह से ही सुशील मोदी के कामकाज का तरीक़ा अलग होता था और वो अधिकारियों के साथ बैठक में भी अफ़सरों की तरह नज़र आते थे|

हालाँकि वो आम लोगों से मिलते रहते थे और उनकी मदद भी करते थे| पत्रकारों और विरोधी दल से नेताओं से भी उनके अच्छे संबंध थे|

पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं, “सुशील मोदी बीजेपी में रहकर भी धर्म के नाम पर आक्रामक भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे| उन्होंने एक ईसाई से शादी भी की थी| मुझे हैरानी भी होती है कि वो बीजेपी में कैसे रह गए|

सुशील मोदी साल 1990, 1995 और 2000 में बिहार विधानसभा के सदस्य रहे थे| साल 2004-05 में वो बिहार के ही भागलपुर सीट से चौदहवीं लोकसभा के सदस्य रहे|

सुशील मोदी बिहार विधान परिषद के सदस्य भी रहे थे और राज्य बीजेपी के अध्यक्ष भी थे|

तमाम पदों पर रहने के बाद भी सुशील मोदी राज्य में बीजेपी को बड़ी ताक़त नहीं बना पाए| आरोप यह भी लगाया जाता है कि सुशील कुमार मोदी ने राज्य में बीजेपी के अन्य नेताओं को भी आगे नहीं बढ़ने दिया और बीजेपी नीतीश कुमार की सहयोगी बनकर रह गई|

बिहार एकमात्र हिन्दी भाषी राज्य है जहाँ बीजेपी अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है|राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मौजूदा समय में बीजेपी बिहार में आक्रामक राजनीति कर रही है और सुशील मोदी इस राजनीति के लिहाज से फ़िट नहीं बैठते थे|अब जो भी वजह रही हो|सुशील कुमार मोदी दुनिया को अलविदा कह गए|उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जा रही है|लोग उन्हें श्रधांजलि दे रहे हैं|उनकी आत्मा की शांति के  लिए इश्वर से कामनाएं कर रहे हैं|

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