डॉ.आंबेडकर समाज सुधारक के साथ एक महान अर्थशास्त्री भी थे: प्रो.गौरी शंकर

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FRIDAY,06,DECEMBER,2024/LOCAL DESK/BREAKING NEWS

नितेश कुमार की रिपोर्ट

अंबेडकर के पंचशील का अक्षरशः पालन मानव को बना सकता है मूल्यवान व चरित्रवान

जमुई/RASHTRA VIHAR LIVE 24 NEWS:भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के 68 वा महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर डॉ आंबेडकर का कृतित्व और व्यक्तित्व विषय पर एक लघु गोष्टी की गई, जिसकी अध्यक्षता राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र कुमार गोयल ने की।
मौके पर मुख्य वक्ता के बतौर केकेएम कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर पासवान ने कहा कि बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर भारत के एक महान समाज सुधारक थे। अंबेडकर का पंचशील सिद्धांत का अक्षरशः पालन मानव को चरित्रवान और मूल्यवान बना सकता है। उनका पंचशील सिद्धांत है- हिंसा से विरक्ति, चोरी से विरक्ति, झूठ से विरक्ति, परस्त्री गमन से विरक्ति,शराब या नशा से विरक्ति की शिक्षा। उन्होंने कहा कि डॉ अंबेडकर एक उत्कृष्ट अर्थशास्त्री भी थे। उनके अर्थशास्त्र से जुड़े योगदान और विचार ने ही उन्हें अर्थशास्त्री के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं.डॉ अंबेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। उनकी थीसिस- “प्रॉब्लम ऑफ द रुपी इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन” भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना का मुख्य आधार बना। उनकी आर्थिक सोच और सुझाव ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। उनके सुझावों को हिल्टन यंग कमिशन ने सहस्र मान ली, जो आरबीआई के गठन का मुख्य कारक बना था।
उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने कृषि और भूमि सुधार पर विशेष बल दिया था। जमींदारी उन्मूलन और किसानों के अधिकारों की वकालत की थी. उनका मानना था कि सामाजिक समानता के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है. एससी/ एसटी और कमजोर वर्ग को आर्थिक मुख्य धारा में लाने हेतु उन्होंने रूपरेखा बनाई थी. डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण सामाजिक-आर्थिक और व्यावहारिक था। उनके योगदानो ने भारत की आर्थिक और सामाजिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया। इसीलिए उन्हें अर्थशास्त्री कहा जाता है भले ही यह क्षेत्र उनका मुख्य क्षेत्र नहीं रहा हो. अंबेडकर के अनुसार भूमि सुधार, कृषि सुधार और ग्रामीण उद्योगों द्वारा ही भारत में समाजवाद लाया जा सकता है.आर्थिक शोषण के नाम पर जमींदारी प्रथा समाप्ति पर विशेष बल दिया था. उनके आर्थिक विचार आज भी प्रासंगिक और उपयोगी हैं. भारत सरकार के 20 सूत्रीय कार्यक्रम डॉ. अंबेडकर साहब के आर्थिक विचारों में मिलते हैं।
अर्थविद प्रो. सरदार राय ने कहा कि डॉ.अंबेडकर स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ अर्थशास्त्र के महान पंडित थे. स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माता के रूप में डॉ.अंबेडकर का नाम सदा अमर रहेगा. डॉ.आंबेडकर इस बात के उदाहरण हैं कि व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में क्या नहीं कर सकता है ? प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बना लेना ही डॉ अंबेडकर के जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा है. ऐसे महान पुरुष को आजादी के बाद मरणोपरांत भारत रत्न की सर्वोच्च उपाधि प्रदान कर अंबेडकर के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता को प्रकट किया. डॉ.अंबेडकर के सदृश्य नवरत्न पर विश्व के किस देश को गर्व नहीं होगा।
राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र कुमार गोयल” ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर भारत के महान राजनीतिज्ञ थे. वे प्रजातांत्रिक संसदीय प्रणाली के प्रबल समर्थक थे. उन्हें विश्वास था कि भारत में इसी शासन व्यवस्था से विविध समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.3 अगस्त 1947 को अंबेडकर साहब स्वतंत्र भारत के विधि मंत्री बनाए गए थे. 21 अगस्त 1947 को संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष बनाया गया. उनकी अध्यक्षता में भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी संविधान की संरचना की गई ,जिसमें नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्तव्यों की व्यवस्था की गई है.
डॉ.अजीत कुमार भारती ने कहा कि डॉ.अंबेडकर भारत की महान आत्मा थे. वे विश्व रतन थे.उन्होंने देश के लिए जो कार्य किया है, वह ऐतिहासिक है.भारतीय संविधान उनकी अमर कृति है.अंबेडकर साहब को दलितों का मसीहा कहना उनके विशाल हृदय और व्यक्तित्व को छोटा करने जैसा है. क्योंकि वे दलितों के मसीहा नहीं बल्कि भारत के मसीहा और महापुरुष थे.
हिंदी के उद्भूत विद्वान प्रो.कैलाश पंडित और डॉ सत्यार्थ प्रकाश ने कहा कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर प्रेरणादीप थे. वे दलितों को आरक्षण देने की मांग के सूत्रधार थे.उन्होंने दलित उद्धार के प्रसंग में अपनी पीड़ा कभी नहीं छुपाया। शिक्षा को ही मानो जीवन का आधार। बाबा साहब ने दिया हम सबको यह उपहार. 27 सितंबर 1951 को डॉ अंबेडकर ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था जिसके अनेकों कारण थे.14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर साहब ने लाखों हिंदुओं के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार की थी, जिसके भी कई कारण थे। वे पर्याप्त सम्मान और राजनीतिक पद हासिल होने के बाद भी भारतीय सामाजिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे।
मौके पर कई गणमान्य लोगों के अलवे छात्र- छात्राएं उपस्थित थे।

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