WEDNESDAY,21,AUGUST,2024/LOCAL DESK/BREAKING NEWS
नितेश कुमार की रिपोर्ट
एससी-एसटी के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण और क्रीमी लेयर कॉन्सेप्ट लागू करने का कोई औचित्य नहीं
जमुई/RASHTRAVIHARLIVE 24 NEWS:-भारत में अनुसूचित जाति एवं जन जातियों को संविधान के माध्यम से बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया है। अब आजादी के 77 साल बाद आरक्षण के भीतर आरक्षण और क्रीमी लेयर लागू करने का फरमान माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी हो चुका है। इस मुद्दे को लेकर देश भर के अनुसूचित जाति / जन जाति संगठन के साथ-साथ जन प्रतिनिधियों ने भी विरोध जताया है. आज 21 अगस्त को इस मुद्दे को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन जारी है।
अनुसूचित जाति /जन जाति समुदाय के लिए आरक्षण का औचित्य एवं महत्त्व विषय पर स्थानीय केकेएम कॉलेज जमुई के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर पासवान ने कहा कि आरक्षण एससी-एसटी के उन्मेष व विकास का एक बहुत शक्तिशाली अस्त्र है। इसके बिना इन जातियों का उद्धार संभव नहीं। अतः आरक्षण में छेड़छाड़ करना और एससी-एसटीके लिए क्रीमी लेयर के कंसेप्ट को लागू करने का ना कोई औचित्य है और नहीं तो किसी को स्वीकार्य एवं शिरोधार्य है। आरक्षण स्वतंत्रता से पूर्व का अन्वेषण है। यह आजादी के बाद दलितों के लिए संवैधानिक आश्वासन है और वर्तमान समय की अनिवार्यता भी है.152 वर्ष पूर्व सन 1882 में हंटर आयोग की गर्भ से आरक्षण का जन्म हुआ था। 19वीं सदी के महान भारतीय विचारक और समाज सुधारक ज्योति वा फूले अनिवार्य शिक्षा के साथ-साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग अंग्रेजों से की थी। अंग्रेजों ने फूले की मांग पर ही अस्पृश्य और पिछड़े लोगों के हित में हंटर आयोग स्थापित किया था।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद 1950 में भारतीय संविधान लागू होने के साथ ही एससी एसटी के लिए बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 के तहत शैक्षणिक संस्थानो और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था दी थी। आरक्षण का लाभ एससी एसटी के लोगों को जरूर मिला है। लेकिन यह मुट्ठी पर लोगों तक ही सीमित रह गया है। आजादी के 78 साल बाद भी ऊंचे पदों पर आसीन दलितों और आदिवासियों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। ऐसे में एससी एसटी समुदाय में क्रीमी लेयर लागू करने की आवश्यकता नहीं है। चुकी सामाजिक न्याय और समता स्थापित करने में आरक्षण शत प्रतिशत सफल नहीं हो सका है। आज भी अनुसूचित जाति, जनजातियों के साथ भेदभाव सामाजिक अन्याय जारी है और आर्थिक असमानता भी व्याप्त है। इसीलिए एससी एसटी में क्रीमी लेयर लागू करना उचित नहीं जान पड़ता है। एक तरफ अन्य के लिए सभी सिद्धियों के द्वार खुले हैं। नव निधियां उनकी पांव चूमती हैं। उनके पास सारी सुविधाएं हैं। लेकिन दूसरी ओर युगों- युगों से उपेक्षित एससी-एसटी हैं, जिनका शोषण नियति और रूदन संस्कृति है। तन ढकने को कपड़े नहीं. दाने-दाने को मोहताज हैं। इस स्थिति में एससी /एसटी जाति के लिए क्रीमी लेयर लागू करने के निर्णय पर पुनर्विचार करना जरूरी है। सन 1932 में आरक्षण का कंसेप्ट और स्पष्ट हो गया था, जब गांधी जी और अंबेडकर के बीच दलितों के लिए विधानसभाओं में सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया गया था। यही नहीं सन 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी में अनुसूचित जाति के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण हेतु सरकारी आज्ञा पत्र जारी किया गया था। माननीय उच्चतम न्यायालय को एससी /एसटी में क्रीमी लेयर लागू करने के निर्णय को वापस लेना चाहिए। इससे दलितों का हित होगा.