कालिका प्रसाद के विचार और कार्य समाज के लिए प्रेरणा स्रोत

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TUESDAY,03,AUGUST,2024/LOCAL DESK/BREAKING NEWS

नितेश कुमार की रिपोर्ट

फाइल फोटो

जमुई:- प्रोफेट हीरो थे कालिका प्रसाद सिंह उर्फ हीरा जी : प्रो पासवान

जमुई/RASHTRAVIHARLIVE24 NEWS:कुमार कालिका प्रसाद सिंह उर्फ हीरा जी की 129 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर केकेएम कॉलेज के परिसर में “बिहार के गौरवशाली इतिहास के आईने में हीरा जी तथा उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व” पर केकेएम कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ गौरी शंकर पासवान ने कहा कि कालिका प्रसाद सिंह उर्फ हीरा जी साहस के सुमेरु, संकल्प के गिरिराज और प्रोफेट हीरो थे। वे स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सिपाही, जमुई जिला का चमकता हुआ सितारा थे। केकेएम कॉलेज हीरा जी की अमर निशानी है। आधुनिक गौरवशाली बिहार के इतिहास की परम सौभाग्य शालिनी तिथि 4 सितंबर 1895 को जमुई गिद्धौर के महाराजा राव महेश्वरी प्रसाद सिंह के आंगन में हीरा जी का एक दिव्य ज्योति के रूप में जन्म हुआ था। हीरा जी गांधी जी के विचारों से प्रेरित थे। महात्मा गांधी के महत्वपूर्ण तीनो आंदोलनों यथा असहयोग आंदोलन (1921 )नमक सत्याग्रह आंदोलन (1930) एवं भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और सक्रिय भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश हुकूमत से भारत को स्वतंत्र कराने की जज्बा और जुनून उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी ।उनका दृष्टिकोण समावेशी था। उनका मानना था कि समाज का विकास तभी संभव है, जब निचले तबके का उत्थान होगा। शिक्षा प्रेमी हीरा जी का कहना था कि शिक्षा सामाजिक-आर्थिक विकास का प्रमुख माध्यम है। समाज के सभी वर्गों को समान अवसर देने की उन्होंने वकालत की थी।
प्रो.पासवान ने आगे कहा कि कालिका प्रसाद समाजवादी अवधारणा, त्याग और राष्ट्र सेवा के प्रतिमूर्ति थे। वे व्यक्तित्व के धनी और कृतित्व के महान पुरुष थे। सन 1933 -34 के मुंगेर के विनाशकारी भूकंप के सहायतार्थ बनी समिति के सक्रिय सदस्य के रूप में सराहनीय सेवा की थी । सन 1927 में बिहार विधान परिषद सदस्य 1937 तथा 1946 में बिहार विधानसभा सदस्य के रूप में उनकी बिहार प्रदेश की नि:स्वार्थ सेवा अविस्मरणीय है। लेकिन विडंबना है कि राजसुख त्याग कर वनझूलिया आश्रम से आजादी की लड़ाई लड़ने वाले कालिका प्रसाद उर्फ हीरा जी का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं है। इतिहासकारों ने तो उनकी इतिहास को भुला ही दिया किंतु आज जमुई बिहार की जनता एवं नेता ने भी उन्हें विस्मृत कर दिया है। हीरा जी अपने ही घर में बेगाने हो गए हैं। आज महापुरुषों का नाम लेना भी दकियानूसी बात हो गई है। आज स्थिति ऐसी है कि कॉलेज के छात्र-छात्राएं यह नहीं जानते कि कुमार कालिका प्रसाद कौन थे ? लोग उन्हें विस्मृत करते जा रहे है मानो ऐसा लगता है कि-
सुन्नी गलियां गांव विराने ,पूर्वज सारे हुए बेगाने। अपनों की पहचान खो गई ,सारे लोग लगे बौराने ।बोलो लोगों किसे सुनाएं, अपने दर्दो के अफसाने। पाषाणी छाती निर्जल है, प्यासे लोग लगे पगलाने। कांटो ने पीड़ा बाटी है, फूल लगे हैं हमें चिढ़ाने। ऐसे भी हमने दिन देखें, अपने शहर बने अनजाने।
उन्होंने कहा कि उस महान पुरुष की महानता अविस्मरणीय है। वे बिहार के गौरव और शान थे। उनमें सज्जनता, दूरदर्शिता, विनयशीलता, निर्भीमानता और राष्ट्रीयता के देवोंपम गुण कूट कूट कर भरे थे। ऐसे महापुरुष के बताए मार्गो पर आज के युवा पीढ़ी को चलना चाहिए। उनके ग्लोरियस हिस्ट्री और जीवनी को भुलाया नहीं जा सकता है। हीरा जी वास्तव में समाज और देश के कोहिनूर थे। कुमार कालिका मेमोरियल महाविद्यालय हीरा जी के भागीरथ प्रयास का ही प्रतिफल है। उन्होंने कहा कि हीरा जी के कृतित्व और व्यक्तित्व के लिए कृतज्ञ राज्य और समाज उनके पावन चरणों में अर्पित श्रद्धा सुमन समर्पित करता रहेगा तथा साहस सेवा त्याग और समर्पण की भावनाओं से प्रेरित होता रहेगा। 10 सितंबर 1953 को हीरा जी का स्वर्गवास हो गया। वे हमारे बीच नहीं हैं, किंतु उनके विचार, सिद्धांत और आदर्श आज भी हमें नई दिशा देते हैं और चिरकाल तक जमुई तथा बिहार वासियों को प्रेरणा और प्रकाश देते रहेंगे। हीरा जी जैसे व्यक्तित्व समाज के लिए एक प्रकाश स्तंभ की तरह होते हैं, जो कठिनाइयों में भी मार्ग दिखलाते हैं। उनका जीवन और उनके विचार भावी पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होंगे। उनके कार्य और विचारों से प्रेरणा लेकर ही हम एक समतामूलक और प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सकते हैं।

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