हिंदी हिंदुस्तान की विविधता में एकता का है प्रतीक: डॉ. गौरी शंकर

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SATURDAY,14,SEPTEMBER,2024/LOCAL DESK/BREAKING NEWS

नितेश कुमार की रिपोर्ट

भारत के इतिहास, साहित्य संगीत और लोककथाओं को जन-जन तक पहुंचाने सबसे सरल भाषा है हिंदी

जमुई/RASHTRAVIHARLIVE 24 NEWS:हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर देर शाम राष्ट्रभाषा हिंदी की दशा और दिशा पर चिंता जाहिर करते हुए अपने उद्बोधन केकेएम कॉलेज के स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ गौरी शंकर पासवान ने कहा कि हिंदी हिंदुस्तान की विविधता में एकता का प्रतीक है। हिंदी को सम्मान देना और उसका संरक्षण करना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। नई पीढ़ी के युवाओं को राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति जागरूक करना एवं इसके महत्व को समझाना भी हमारा दायित्व है। हिंदी भारत के इतिहास, साहित्य, संगीत, कला और लोककथाओं को जन-जन तक पहुंचाने का सबसे सरल भाषा है। हिंदी दिवस अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करने का अवसर प्रदान करता है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि हिंदी केवल संवाद का माध्यम ही नहीं, बल्कि हमारे विचारों व भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे बेहतर और सरल भाषा है। हम भारतवासियों को हिंदी के प्रचार- प्रसार, संवर्धन और संरक्षण के लिए दृढ़ संकल्पित रहना चाहिए और आने वाली पीढ़ी तक इसे पहुंचने का प्रयत्न करना चाहिए। उन्होने कहा कि “हिंदी हैं हम, वतन हैं हिंदोस्तां हमारा” प्रसिद्ध पंक्ति मातृभूमि राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम और गर्व का सूचक है। यह पंक्ति भाईचारा, देश की अस्मिता के भावों को ही प्रकट करती है। हिंदी प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा औपनिवेशिक भाषा अंग्रेजी और अंग्रेजियत है। भारत से अंग्रेजों को सात समुंदर पार कर वापस ब्रिटेन गए 77 वर्ष हो गए लेकिन गुलामी का प्रतीक अंग्रेजी और अंग्रेजियत हिंदुस्तान से नहीं गया है। आज भी लोग हिंदी रूपी देसी मुंह में अंग्रेजी रूपी जीभ लगाकर अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करते हैं। 14 सितंबर 1949 को भारत ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार किया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में हिंदी को संघ की भाषा व राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई। हिंदी के साथ दुर्भिसंधि यह हुई कि अनुच्छेद 343 (2) में अंग्रेज़ी को 15 वर्षों के लिए सहचरी भाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता दे दी गई। अंग्रेज तो भारत से चले गए लेकिन अंग्रेजी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (2) में रहने की अपनी जगह बना ली। 15 वर्षों की अवधि मुकर्रर की गई। लेकिन अंग्रेजी 74 साल से हिंदी के सीने पर मूंग दर रही है। आज तक किसी सरकार ने अंग्रेजी को संविधान के अनुच्छेद 343 (2) से बाहर करने की राजनीतिक साहस नहीं जुटा सकी। यह बहुत ही शर्म की बात है।
प्रो.पासवान ने आगे कहा कि हिंदी राष्ट्रीय एकता की निशानी है। इसमें भारतीय कल्चर और सभ्यता की झलक मिलती है। यह भाषा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के अधिकांश देशों में बोली और समझी जाती है। यह हिंदी साहित्य और संस्कृति को समृद्ध बनाती है। हिंदी साहित्य में तुलसीदास, सूरदास, कबीर दास, रैदास,प्रेमचंद, दिनकर और सुमित्रानंदन पंत जैसे अनेक कवियों एवं लेखकों ने अमूल योगदान दिया है। अतः भारतीय संस्कृति और सभ्यता की की वाहक हिंदी को हर भारतीय नागरिकों को सम्मान करना चाहिए। केवल हिंदी के प्रति सम्मान प्रकट करना ही नहीं वल्कि इसे भविष्य में और भी सशक्त तथा समृद्ध बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हिंदी वर्तमान परिपेक्ष में दुनिया में अपने पहचान और स्थान बना ली है फिर भी इसके समकक्ष की समस्याएं और चुनौतियां खड़ी हैं। विदेशी भाषा अंग्रेजी हिंदी के प्रचार प्रसार और उन्नति के मार्ग में सबसे बड़ी समस्या है। ऐसा देखा गया है की राष्ट्रभाषा होने के बावजूद भी हिंदी को शिक्षा और प्रशासनिक कार्यों में प्राथमिकता नहीं मिलती है। कई शिक्षण संस्थानों में कभी कदा बच्चों द्वारा हिंदी का उच्चारण करने पर उन्हें नैतिक के साथ-साथ फिजिकल पनिशमेंट भी दिया जाता है। कुछ अंग्रेजीपरस्त जनप्रतिनिधि भी हिंदी को अपमानित करते हैं। यह तो हिंद में ही हिंदी का सरासर अपमान एवं देशद्रोह है। ऐसे लोगों एवं संस्थाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। हिंदी की इस स्थिति के लिए हम हिंदुस्तानी ही अधिक दोषी हैं।

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